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श्री रामचन्द्र जी को अंत समय में अपने ही पुत्रों लव तथा कुश से पराजय का मुँह देखना पड़ा। सीता जी ने उनके दर्शन करना भी उचित नहीं समझा। देखते-देखते पृथ्वी में समा गई। इस ग्लानि से श्री रामचन्द्र जी ने अयोध्या के पास बह रही सरयु नदी में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला जल समाधि लेकर समाप्त की। परमार्थी हनुमान जी को निस्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आए, मोक्ष मार्ग बताया। जीव का कल्याण हुआ। हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेंगे। उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
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